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एहसास-Valentine Contest ”

soch
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प्यार ईश्वर की दी हुई एक अनमोल नेमत है.इस एहसास से शायद ही किसी इन्सान का दिल रिक्त हो .प्यार शब्द के एहसास मात्र से ही रोम रोम खिल उठता है . हर इन्सान अपने जीवन में किसी न किसी से प्यार करता ही है . मैंने भी किसी से प्यार किया था .लेकिन वो थोडा अजीब था ! अजीब इसलिए क्योंकि मै अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाई . और न ही किसी से उसे कह पाई . लेकिन उसका एहसास इतना गहरा है की उसे याद करके आज भी मै तरोताजा हो जाती हूँ . ये बात २४ साल पुरानी है . हमारा परिवार एक हाऊसिंग सोसायटी में रहता था मेरे घर के सामने पार्क के सामने वाले रो में वो परिवार रहता था . जब भी मै बहार निकलती या लान में बैठती . तो वो महाशय बाहर ही दिखते. और अगर नहीं होते तो मेरे लान में आते ही न जाने कहाँ से प्रगट हो जाते .पहले तो मुझे बहुत बुरा लगता .लेकिन फिर धीरे-धीरे मुझे ये अच्छा लगने लगा .कभी कभी जब मै बाहर निकलती और वो मुझे नहीं दीखता तो मै बहुत उदास हो जाती मै जब कालेज जाने को निकलती तो वो सायकिल लेकर निकल लेता औ र काफी दूर मेरे पीछे-पीछे चलता रहता .मेरी सहेलियां मुझे चिढाती वो देख तेरा बोडिगार्ड आ रहा है .लेकिन मै साफ नकार जाती वो मेरे लिए क्यों आएगा मै क्या जानूं उसे मै तो आज तक उससे न उसेमिली हूँ न कभी बात की है. लेकिन सच्चाई यही थी की वो मेरे लिए आता था . कई बार मेरे छोटे भाई के साथ मेरे घर तक भी आये मैंने घर वालों के डर से उससे कभी बात नहीं की . लेकिन उसकी नज़रों में अपने लिए एक कशिश जरुर देखी . हमने अपने प्यार को आँखों के मौन आमन्त्रण तक ही सीमित रखा .और प्यार के एहसास में डूबे रहे . एक दिन उसने पार्क में बैठे अपने दोस्तों को चिल्लाकर बताया की मेरी शादी तय हो गयी . जो सिर्फ मै ही समझ सकती थी की दोस्तों को बताने के लिए नहीं मुझे सुनाने के लिए था . सुनकर मुझे दुःख हुआ लेकिन मै कर भी क्या सकती थी . उसके शादी के बाद तीन चार साल तक मै वहां रही . मैंने बाहर बैठना ही छोड़ दिया .लेकिन कभी अगर बाहर निकलती तो वो जरुर आ कर अपने लान में बैठ जाता .हम लोगों का मूक प्यार एक पवित्र प्यार था .वो प्यार का पहला एहसास आज भी मेरे मन में जिन्दा है और हमेशा रहेगा .शायद उसने भी अपने मन के किसी कोने में उन पलों को सजोंकर रखा हो . आज मै अपने परिवार और बच्चों के साथ बेहद खुश हूँ . और वो पुराने पल आज भी मेरे मन में तरोताजा है हमेशा रहेंगे .

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