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“ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय”
“प्रेम कहो या प्यार” ढाई अक्षर के इस शब्द की पूरी व्याख्या आज तक न कोई कर पाया है और न कर पायेगा. मानव जीवन में यदि प्रेम ना हो तो कुछ भी नहीं है.वैसे इस संसार में सबके लिए प्रेम के अलग -अलग मायने है.
प्रेम है सुबह की गुनगुनी धुप में
प्रेम है ओस की चमकती हुई बूंद में
प्रेम है खिलते हुए फूल में
प्रेम है पछियों के कलरव में
प्रेम है बच्चो की खिलखिलाती हंसी में
प्रेम है ईश्वर की भक्ति में
प्रेम है अटूट श्रधा और विश्वास में
प्रेम है हमारी हर आती जाती साँस में
प्रेम है हमारी हर चाहत की आस में
प्रेम है माँ के आगोश में
प्रेम है माँ की फ़िक्र में
प्रेम है स्नेह से सर पर फिराते माँ के हाथ में
प्रेम है पिता की उंगली पकड चलते हुए साथ में
प्रेम है बड़ों के प्यार भरी डांट में
प्रेम है कन्हैया की बंसी में
प्रेम है राधा के इन्तजार में
प्रेम है गोपियों की पुकार में
प्रेम है नववधू की चितवन में
प्रेम है प्रियतम की मुसकान में
प्रेम ही तो बंधन हर रिश्ते की डोर में
इस जीवन रूपी रचना का यही तो सार है
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