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लाचार माँ

soch
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मेरे गाँव के एक सभ्रांत परिवार की एक बुजुर्ग महिला मै जब भी गाँव जाती हूँ वो जरुर
मिलने आती.इस बार जब मै गाँव गयी तो वह मिलने नहीं आई पूंछने पर पता चला वो
बहुत बीमार है उन्हें टी वी हो गयी है. अब वो चल फिर नहीं सकती बिस्तर पर ही पड़ी रहती है.घर वालों ने उन्हें घर के बहार छप्पर वाले दालान में कर दिया है. उनके पास कोइ नहीं जाता क्योंकि ये छूत की बीमारी है सबको लग जाएगी. मुझे सुनकर बेहद दुःख हुआ. एक जमाना था जब पुरे घर पर उनका राज चलता था.उनके हुकुम के बिना पत्ता नहीं हिलता था. आज उनके तीन-तीन बेटे और बहु है पति भी जिन्दा है लेकिन बुढ़ापे से लाचार है.
वो बेटे जिनके लिए वो मुंह अँधेरे उठकर रसोई तैयार करती थी, उनकी हर छोटी बड़ी
जरुरत का ध्यान रखती थी. क्या खाना, क्या पहनना,क्या करना है. बीमारी की हालत में
रात-रात भर जागकर देखभाल करती थी. बच्चों के जरा सा रोने पर मानों उनकी जानही
निकल जाती थी. आज वही माँ छूत की बीमारी बन गयी. उसको घर के बेकार सामान की
तरह बहार फेंक दिया. मै दुसरे दिन उनसे मिलने गयी. मै पहले उनके घर के अन्दर गयी
उनकी बहुएं मुझे देखकर बहुत खुश हुई. कहने लगी जीजी आप कब आई. मैंने उनकी बातें
नजरअंदाज करते हुए पूछा माँ जी कहाँ है दिखाई नहीं दे रहीं. उनहोंने कहा आपको पता
नहीं वो बीमार है, अब वो वहीँ बाहर दालान में रहती है. मैंने कहा ठीक है मै वहीँ जाती हूँ
उनसे मिलने तभी वो तपाक से बोली नहीं जीजी वहां मत जाइये उन्हें टी वी हो गयी है
हमेशा खांसती रहती है सब कहते है ये छूत की बीमारी है आप जाएँगी तो आपको भी लग
जाएगी मैंने कहा मुझे नहीं लगेगी तुम सिर्फ अपनी चिंता करो मुझे उनकी बात सुनकर
आश्चर्य भी हुआ और बहुत गुस्सा भी लगी. मैंने कहा आजकल के ज़माने में दुनियां आगे
जा रही है और तुम लोग अभी भी वही गुजरे ज़माने की बात लेकर बैठी. हो. आज हर
सरकारी अस्पताल में इसका मुफ्त इलाज है. इस हालत में उन्हें अपने परिवार की
साथ की जरुरत है उन्हें सही देखभाल की जरुरत है, तो तुम लोगों ने उन्हें अकेला मरने
के लिए छोड़ दिया है यह कहते हुए मै बाहर निकल आई .मै जब घर से बाहर थोड़ी दूर
पर बने उस दालान में गयी तो देखा उस दालान को चारों तरफ से घास फूस के बने टट्टर
से ढक कर एक कमरे जैसा बना दिया गया था एक तरफ से आने जाने के लिए थोडा सा
खुला था. मै अन्दर गयी वहां बड़ी अजीब हालत थी. कोने में एक चारपाई पर वो लेटी
थी उनका शरीर हड्डियों का ढांचा बन गया था. वही एक कोने में मिटटी का चूल्हा बना
हुआ था उस पर एक जली हुई पतीली राखी थी पास में ही कुछ और बर्तन पड़े थे, एक
बाल्टी में थोडा सा पानी रक्खा था पास की जमीन भीग कर कीचड़ सी बन गयी थी
उनके भीगे कपडे वही पास में पड़े थे. मुझे देखते ही वो उठने की कोशिश करने लगीं
मैंने उन्हें लेटे रहने को कहा और उनके पास ही एक चौकी लाकर बैठ गयी. मुझे
देखकर उनके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. बड़ी मुश्किल से मैंने उन्हें चुप कराया
मैंने कहा आप एकदम से कैसे इतना बीमार हो गयी.आपने अपना इलाज क्यों नहीं
कराया. तब उन्होंने बताया नहीं बिटिया मुझे बहुत से दिनों अक्सर बुखार हो जाता था
खांसी हो जाती थी पर मै ध्यान नहीं देती थी कोई दर्द की दवा बुखार की दवा खा लेती
या फिर तुलसी का काढ़ा पी लेती तो कुछ दिन आराम हो जाता था. पर इस बार जब
बीमार पड़ी तो छ महीने हो गए बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा. भैया(बेटा)
डॉक्टर को दिखाए तो वो टेस्ट कराने को बोले थे टेस्ट कराये तो वो बोले इलाज
लम्बा चलेगा इनको टी वी हो गयी है. तब से सब हमको यहाँ पर छोड़ दिए है. मैंने
पूंछा खाना पीना समय से मिलता है तो बोली कहाँ बिटिया जब हिम्मत पड़ती है
बना लेती हूँ नहीं तो वैसे ही पड़ी रहती हूँ. ये सब सुनकर मै स्तब्ध रह गयी मुझे
उनकी हालत देखकर बहुत रोना आ रहा था. कुछ देर उनसे बात करके मै अपने घर
आ गयी. दो दिन मै गाँव में रही समय-समय पर उन्हें भोजन दूध दवा वगैरह दे
आती थी. उनके बेटे और बहु को बहुत समझाया की उनकी सेवा करो उनहोंने
कितने कष्टों से तुम्हें पाला पोसा होगा. यही दिन देखने के लिए …….क्या ऐसी होती
है संतान………………………

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